Monday, July 6, 2009

थोड़े मनातले...

सागराच्या वादळात अडकलेल्या ,
जहाजालाही काठा पासून दूर जावेसे वाटते,
किनारा खडकाळ आहे हे जेव्हा त्याला कळते.
मी मात्र त्या लाटां प्रमाणे आहे,
सतत तुटले तरी लाटाना किनारयाचिच ओढ़ आहे ...
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मी तुला पाहिले मला सोडून जाताना ,
लोकानी मात्र पाहिले माझे अश्रु वाहताना .
लाख प्रयत्न केले पण , अश्रु काही लपले नाही ,
एवढे करूनही तुझे जाने टळले नाही .
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माझे घर नदी किनारी आहे ,
अशी लोकांची ओरडा-ओरड होती .
मन मात्र माझे सदैव कोरडे राहिले ,
मला नेहमीच याचीच खंत होती .
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कधी-कधी दुःखाची खुप गर्दी होते .
त्या दुःखात मग रडून-रडून सर्दी होते.
तर मग आपण असे का करत नाही ?
त्या आसवांच्या वर्षावात भिजुन घ्यायचे खूप...
मात्र नंतर न विसरता घ्यायची मैत्रीची ऊब.
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